जेंगऽ खेतिया में लहलाहे ला, लागल फसल,
ओहिंगऽ करऽ ता मन उज्जर के हरिअर करे के।
हवा बन के आईल बा केहू बरखा के,
पर नईखे आईल केहू बन के बदरी सावन के।
जे के मन चाहे ला, उ कहाँ मिलेला!
अब मिलेला खाली बरखा बेमौसम के।
जब गरजेला बादल कौनो बेरा पहरिया में,
तऽ समझऽ फाटल बा मन कहीं केहू के।
ई काहे हो ला?
ए से पहिले ठीक करे के होई आपन उज्जर मन के।
-प्रकाश साह
22062024
शब्दार्थ :
●जेंगऽ : जिस तरह से; ●ओहिंगऽ : उस तरह से; ●उज्जर : सफेद; ●हरिअर : हरा रंग, हरियाली; ●बेरा : समय; ●पहरिया : पहर
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ReplyDeleteधन्यवाद एवं आभार।
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद।
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद।
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