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Tuesday, 1 June 2021

वज़ह का दोष | (कविता/संवाद) | ऐ वज़ह! तुम्हारे वज़ह से ही मैंने अपना इश्क का समंदर खोया है | PRAKASH SAH



वज़ह का दोष
■■■■□■■■■

 

चलो

कभी वज़ह को वज़ह मान लिया जाए

कुछ रिश्ते टूटने की,

बिन दोष दिए उन रिश्तों में पड़े दो व्यक्तियों को।

मैंने

अक्सर देखा है लोगों को

बेवज़ह की बातों में फँसकर

रिश्तों को फँसाते,

वही लोग जो कुछ पल पहले ही

साथ में खूब ठहाके मारे जा रहे थें।

दोष

बस उस वज़ह का होता है

जिसमें हम फँसकर

सालों तक अपनों से दूर हो जाते हैं।

कभी-कभी

उस वज़ह को भी ढूँढ़ना चाहिए

जिस वज़ह से उस वज़ह को हम सच मान लेते हैं।

क्योंकि

अचानक यूँ ही कोई वज़ह, वज़ह नहीं बनता,

एक 'सुलझी बेमतलब की वज़ह' का रूप

वक्त-दर-वक्त कुछ 'अनसूलझी वज़हों की तहें' ले लेती है।

                     ***



www.prkshsah2011.blogspot.in

 

ऐ वजह! तुम्हारे वज़ह से ही

मैंने अपना इश्क का समंदर खोया है

□■□■□□■□■□

 

ऐ वज़ह!!!

इधर आओ पास।

हाँ, मेरे पास!

देखो...

मेरे पैरों के नीचे

ये बिखरे पड़े रेत, मेरा दिल ही है।

क्या तुम इसे पहचान रही हो???

अच्छा!!

याद करो...वो दिन

जब कलकल करती नदी की धारा में

मैं अपनी प्रियतमा संग डूबकियाँ ले रहा था

तब तुमने ही

एक झूठ का भँवर बनाया था

कि मेरी प्रियतमा मुझसे प्रेम नहीं करती।

और मैं तब

हताहत होकर

अचानक

तुम्हारे बनाए गये

इस वज़ह के सवालों के

भँवर में

इतना घूमा

कि मेरा दिल टूटकर वहीं रेत बन गया।

 

ऐ वज़ह!

हाँ मैं तेरी वज़ह से ही,

मैं समन्दर तक बिखर गया।

लेकिन

तुमने एक बार भी

कोई भी

यूँ ही

उस झूठ पर

एक बनावटी सच का

मलहम लगाने को भी नहीं सोचा और

ना ही कभी कोशिश की

कि तुम मेरे

उस रेत-से हुए दिल को समेटकर

कम-से-कम

पत्थर का ही दिल बना दो

जिससे कि

जब भी मेरी प्रियतमा

इस नदी किनारे आये

तो कम-से-कम

मैं उसके कोमल एहसासों

को तो अपना बोल पाऊं।

पर तुमने ऐसा भी कुछ किया नहीं।

 

ऐ वज़ह!

क्या तुम्हें पता है कि

आज मैं तुम्हारे पास क्यूँ आया हूँ?

अगर नहीं, तो जान जाओ

क्योंकि आज मैंने देखा

तुम्हारे दुआरे

कि यही मेरा रेत-सा दिल, लहरों के साथ मिलकर

तुम्हारे घर के चौखट को ठोकर मारे जा रहा था।

उस वज़ह की सिर्फ एक 'बेचैनी' थी...

तुम्हें कुछ याद दिलाने के लिए...

जो शायद तुम भूल गयी हो

कि मैंने ही अपना इश्क का समन्दर खोया है,

तुम्हारे वज़ह से,

ऐ वज़ह!!!

 

ऐ वज़ह!!!

इधर आओ पास।

हाँ, मेरे पास!

देखो...

मेरे पैरों के नीचे

ये बिखरे पड़े रेत, मेरा दिल ही है।

 -प्रकाश साह

150521


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आपकाे यह रचना कैसी लगी नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बतायें। और अगर मेरे लिए आपके पास कुछ सुझाव है तो आप उसे मेरे साथ जरूर साझा करें।     

🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏

BG P.C. : YourQuote.in

P. Editing : PRAKASH SAH