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Friday, 16 August 2024

शतरंज का खेल | PRAKASH SAH

 


तुम मेरे चरित्र का चित्र
क्या ही उकेर लोगे।

गंभीर मैं क्यों ही बनूँ?
समझदार मेरे शब्द होंगे।

हाँ, चुपके से हर बार तुम
मेरी हर खबर ले लेते हो।

तुम मुझसे क्या छिपाओगे?
शतरंज में दो ही रंग होते हैं।

इस दो रंग के खेल में
प्यादा हर बार आगे रहता है।

चलो आज नाव पे झील का सैर करते हैं
वहाँ शतरंज का एक खेल  खेलते हैं।

तुम झील का कीचड़ लाना,
मैं सफेद कमल लाऊँगा।

जब भी मैं मुरझाऊँगा,
तुम कीचड़ खूब उछाल देना।

रंग मैं क्या बदलूँगा,
रण में मेरा एक ही रंग होगा।

तुम जब भी मुझसे पूछोगे,
जीवन में तुमने क्या छुपाया है?

हर बार मेरा एक ही ज़वाब होगा,
वो 'रंज' नहीं, 'सुगंध' होगा।

जीवन में जब भी बाधाएँ आयी हैं,
हर बार मैं इसके साथ खिला हूँ।

शतरंज के इस खेल में
हर बार मैं जीता हूँ।

हर बार मैं खेला हूँ,
   हर बार मैं जीता हूँ....

-प्रकाश साह
17102022




🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏

10 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" रविवार 18 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी ....  http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

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    Replies
    1. जी अवश्य। धन्यवाद एवं आभार।

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  2. प्रिय प्रकाश, आज आपकी रचना बहुत ही अच्छी लगी मुझे! एक धवल चरित्र को किसी अनावश्यक आवरण की आवश्यकता कभी नहीं होती? निश्चित रूप से छद्म लोगों द्वारा फेंका गया कीचड़ कितना मलिन हो उसमें उजले चरित्र का सफेद कंवल अपनी आभा से जगमगाता है! एक सुंदर सरल और सहज अभिव्यक्ति के लिए बधाई आपको!

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    Replies
    1. जी धन्यवाद, दीदी। मेरी रचना पर आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया हमेशा से ही मुझमें उत्साहवर्धन का काम करती है। सादर प्रणाम।

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  3. क्या बात है? कीचड़ में कमल, शतरंज के प्यादे,
    जीवन के खेल को परिभाषित करती उत्तम रचना, बहुत बधाई।

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  4. जी हाँ। बहुत-बहुत धन्यवाद आपका। सादर प्रणाम।

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  5. बेहतरीन सुंदर प्रतीकों से सजी सार्थक रचना

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