।।
पूर्वांचल ।।
जिसने पूर्वांचल की गोद मे खेला,
पग-पग
मे देखा आस्था का मेला ।
जिसने
खाई इस मिट्टी कीसौगंध,
पल-पल
महसूस की इसकी सुगंध ।
जिन
आत्माओं में जगी धर्मत्व की ज्ञान,
जन-जन
ने माना उन महात्माओं को अपनी शान ।
आत्मज्ञान का हुआ बोध,
इस भूमी पे अवतरीत हुए, ‘महात्मा बुध्द’ ।
जब-जब संसार ने थामा इस भूमी का
दामन,
तब-तब ललाईत हुएं, करने को इसकी छाओ में भ्रमण ।
पूर्वांचली
वासियों
के आन-बान-शान का दिवार,
सब
का ये मनोरम विहार- हर
आत्माओं मे शुमार ।
गुरू
चाणक्य के गुर का द्वार,
राजनीत
की नीतियों का संसार मे बहा बयार ।
।।
इस
भूमी की प्यास बुझाती माँ गंगा,
जब
सर पे माँ का आशीर्वाद,
किसी
भी दुष्ट की
ना होती मंशा-
ना
लेते पूर्वांचली वासियों से
कभी पंगा ।
पूर्वांचल
की ईमान का एक ही मूलमंत्र,
सदैव
कडी परिश्रम का होता है संग ।
इसकी
हवाओं में हरियाली का संदेश,
हर
जीव के प्रती समभाव रखने का है उपदेश ।
खेत-खलिहान ही रोज-मर्रा का काम,
धरती-माता हैं इनकी धाम ।
इसकी गोद में ही होता हर शाम,
मिठ्ठी बोल इनकी पहचान-
मगही, मैथली, अवधी,
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