इस वर्ष 2020 में बिहार के कुछ क्षेत्र में 2002-03 के बाद फिर से बाढ़ आया यानी कि लगभग 18 वर्ष के अंतराल के बाद। एक नई पीढ़ी इसको पहली बार देख रही थी। जिन लोगों को पिछले बाढ़ का अनुभव था उन्होंने बताया कि इस बार बाढ़ का पानी अधिक था। यह बाढ़ भयावह था।
पूरा गाँव जलमग्न था। यहाँ धान का पूरा फसल बर्बाद हो गया और कई पेड़-पौधें सुख गए। ऊँचे स्थान पर पहुँचने का एकमात्र साधन गाँव के मुखिया द्वारा उपलब्ध कराया गया एक नाव था। घरों में पानी घुस चुका था। जिनका घर दो मंजिला था वे दूसरी मंजिल पर चले गये थें। जिन लोगों को अपने मकान में रहने में परेशानी हुई उन्होंने नहर के बाँध पर अपना स्थान बनाया मुख्यतः अपने पालतु पशुओं के लिए। क्योंकि इस बाढ़ में सबसे अधिक परेशानी इन पालतु पशुओं और इनके मालिकों को हुई। इस आपदा में मनुष्य के लिए भोजन तो किसी भी तरह से उपलब्ध हो सकता था किन्तु जानवरों के लिए हरी घास ढूँढ़ना बहुत ही मुश्किल था। जो लोग अपने पालतु पशुओं के लिए भूसा(चारा) इकठ्ठा करके रखा था उसको इस बाढ़ के पानी में बचाए रखना भी बहुत चुनौतिपूर्ण था।
सरकारी तंत्र द्वारा नहर के बाँध पर स्थित हनुमान मंदिर के पास कुछ दिन तक लोगों के लिए भोजन का प्रबंध कराया गया और लोगों को अस्थायी आवास बनाने के लिए एक-एक बड़ी प्लास्टिक बाँटा गया। बिहार के एक राजनीतिक पार्टी द्वारा, जिसके मुखिया पप्पु यादव हैं, नहर पर स्थित लोगों के लिए जेनरेटर के माध्यम से बिजली उपलब्ध कराया गया। कुछ स्थानीय समाजसेवी भी अपने स्तर पर मदद कियें।
इस आपदा के अनुभव को संक्षेप में मैंने एक भोजपुरी कविता में पिरोने की कोशिश किया है। नीचे आप भी पढ़िय...
(1)
ई बार फेर बिहार पे नेपाल आशीष पड़ल बा
ऊहवें से हाहाकार मचईले बाढ़ चलल
बा
साँस फुलईले खूब मुँह बावत, उ बढ़
रहल बा
खेतवाँ के हरिअर-हरिअर रंग, नीला-नीला
कर रहल बा
हर साल बिन पानी के बर्बाद फसल के असल सच
इहवें बा
अबकी दुअरा-अंगना, गंगा
मईया के पाठशाला लागल बा
(2)
पूरा गाँव भईल बा खाली, सबजन
के भईल बा दुखवा
लोग आपन पेट छोड़ के, देखत बानी मालजाल के भूखवा
गाछ-वृक्ष भईलन अकेला, बिन
बतियले एक महिना
कुछ दुलरूवा सुख गईलन, जब
देखलन लोग कहीं ना
(3)
काम-धंधा होगईल सब ठप, जमापूंजी
होगईल सब खत्म
बहुते घट गईल घटना, अब
बढ़ गईल जान के खतरा
सेवा-पुण्य में अईलन अपने गाँव-जवार के
लईका
अन्न-इंधन से चिंतामुक्त, सुतलन
सबजन के बचवा
(4)
खाली-खाली देख के खेत, निराशा
आईल बा खूब भर पेट
सब किसान के आईल बा हाथ, बस
मुआवजा मात्र रेत
केकर नीति भईल बा फेल, अब चुनाव
में नेता होईहन रेल
आपदा में नेता केतना नेक, चल बदल
के भेष खूब रोटी सेक
NOTE: कुछ शब्द के अर्थ....
हरिअर : GREEN, मालजाल : ANIMAL
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🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏
🙏🙏
ReplyDeleteNice poem 👌👌👌
ReplyDeleteTouching lines and expressed beautifully.
ReplyDeleteवाह! बेजोड़!!
ReplyDeleteNice
ReplyDeleteGood paem
ReplyDeleteबहुत बढ़िया।
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