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Sunday, 15 May 2022

वन मेला - Prakash Sah

 

www.prkshsah2011.blogspot.in


वन मेला दिख गया, फूल-पत्तें नाच रहे थें

मैं उनके पास गया, वो सुकून बाँट रहे थें 


रूनझूण-रूनझूण आवाजें, जमीन पे ससर रहे थें

बुजुर्गों जैसे डाँटकर, सूखे पत्तें कुछ समझा रहे थें 


बादल आये थें चुपके से, मैं उलझा था वन देखने में

भर झोली लाये थें पानी, सबको नहलाकर चले गये 


जंगल से ही जीवन है, तुम मुझे क्यूँ सिमटा रहे?

शहर में मुझे शामिल करो, शहर से क्यूँ हटा रहे?

-प्रकाश साह

09052022


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BG P.C. : YourQuote.in

P. Editing : PRAKASH SAH