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Saturday 12 November 2022

लताओं के हार जाने से | PRAKASH SAH


www.prkshsah2011.blogspot.in

 

बेकरार है कोई हमसे

मोहब्बत करने को इस तरह से।

जैसे कुछ लताएँ

चढती हैं दीवार पे जिस तरह से।


हाँ, हम भी

कभी-कभी दिल हार जाते है उन पे।

जैसे मोहब्बत-ए-इम्तेहाँ में

दीवार को ले लेती हैं लताएँ आगोश में।


रुख़सत-ए-मौसम आने से

सिर्फ एक ही दिल को तकलीफ होता नहीं,

जैसे कईयों का बसेरा उजड़ जाता है दिवार से,

लताओं के हार जाने से। 

लताओं के हार जाने से...

-प्रकाश साह

29092022





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आपकाे यह रचना कैसी लगी नीचे कमेंट बॉक्स में लिखकर जरूर बतायें। और अगर मेरे लिए आपके पास कुछ सुझाव हाे तो आप उसे मेरे साथ जरूर साझा करें।     

🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏

BG P.C. : PRAKASH SAH

P. Editing : PRAKASH SAH

6 comments:

  1. लता को दीवार का सहारा चाहिये तो दीवार को लता के होने से एक भावनात्मक सुकून मिलता होगा।शायद कईयों के नसीब से ये सहारे भी दूर हो जाते हैं।

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 14 नवम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. जी सादर आभार-धन्यवाद आपका।

      Delete
  3. आपका भी बहुत-बहुत शुक्रिया। आपने मेरी रचनाओं के लिए अपना कीमती समय दिया।

    ReplyDelete