बस...! इतना कहूँगा बेवक़्त था तुम्हारा मौन होना.., फिर भी तुम्हें सुन लेता हूँ - हर वक़्त। मैं अधिक नहीं कहूँगा जिससे की कि मेरी कुछ अनकही बातें इंधन बनके दीपक को प्रज्वलित करते रहे....लम्बे अरसे तक।
।। हर कोई मौन का नाटक नहीं करता ।।
कोई फूलों से पूछे, उसका हाल कौन लेने है आता
कोई बारिश से पूछे, उसमें कौन-कौन है भीगता
दर पर आया हर फकीर, ढ़ोंगी नही होता
हर कोई मौन का नाटक नही करता
-~-
बालों से रिसते पानी के बूंदें, इतने जिद्दी
क्यों होते
आकाश में लटके तारें, इतने दूर क्यों होते
कोई अजनबी, पराया से अपना बन जाता
हर कोई मौन का नाटक नही करता
-~-
पलकों के नयनों में, सपनें कौन भर जाता
सीपों के मुँह में, मोती कौन रख जाता
अपनो से मुँह मोड़, कैसे कोई हमें छोड़ जाता
हर कोई मौन का नाटक नही करता
©PS
बहुत ही सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद!अभिलाषा जी।
Deleteदर पर आया हर फकीर, ढ़ोंगी नही होता
ReplyDeleteहर कोई मौन का नाटक नही करता
बहुत ही सुंदर मौलिक भाव प्रिय प्रकाश जी | रचना बहुत मर्मस्पर्शी प्रश्न कर रही है | अच्छा लिख रहे हैं आप | मेरी शुभकामनायें स्वीकार हों | सस्नेह --
संतोष की अनुभूति हुई आपकी प्रशंसा और प्रोत्साहन से। आभार।
Deleteखूबसूरत लेखन अपने आप ताजगी लिए , हार्दिक शुभकामनाएं . लिखते रहिए . सस्नेह .
ReplyDeleteप्रोत्साहन और स्नेह के लिए धन्यवाद।
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteधन्यवाद, अनराधा जी।
Deleteसुन्दर सृजन. ज़िंदगी के पेचीदा बिषय अपनी जटिलताओं के जाल में हमें उलझाये रखते हैं और हम दुश्वारियों को पार करते हुए आगे बढ़ते रहते हैं.
ReplyDeleteबधाई एवम् शुभकामनाएं. लिखते रहिये.
धन्यवाद भईया। मैं भी आगे बढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ।
Deleteबेहद मर्मस्पर्शी रचना प्रकाश जी।
ReplyDeleteउलझे सुलझे प्रश्न और असंतोष,असंतुष्टि में लिपटे उत्तर का ही नाम तो जीवन है। जरूरत है सकरात्मकता की लौ जगाये रखने की फिर रास्ता साफ नज़र आता है।
धन्यवाद, श्वेता दी।
Deleteआपने बहुत हद तक मेरी भावनाओं को छू लिया। और मार्गदर्शन भी किया।
आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/10/92-93.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteमेरी रचना और भाव को उचित स्थान देने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद, राकेश जी।
Deleteमौन के पीछे कोई न कोई कारण जरूर होता है, अकारण कुछ नहीं
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना
आभार आपका।
Deleteवाह अनुपम,
ReplyDeleteविसंगतियों से भरे संसार में अपवाद स्वरूप कई आश्चर्य होते हैंं ।
बहुत सहज सुंदर प्रस्तुति
कुसुम जी, बहुत-बहुत आभार
DeleteKya baat kya baat kya baat!!!
ReplyDeleteधन्यवाद आपका।
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