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Monday, 1 March 2021

अशुद्ध मन - prakash sah

 

अशुद्ध मन में पूजा तेरी,

लक्ष्य काे भेदा नहीं।

"अशुद्ध हुआ तेरा मन"

तुमने इसे जाना कैसे?

'शुद्धता' क्या अभी शेष है!

या, फिर यह भी तुम्हारा

काेई नया भेष है!

क्याेंकि बेवज़ह कुछ भी हाेता नहीं...

-Prakash Sah


  नीचे कमेंट बॉक्स में मुझे लिखकर जरूर बतायें कि यह रचना आपको कैसी लगी। अगर आपका कुछ सुझाव हो तो उसे भी मेरे साथ साझा करें।     

🙏🙏 धन्यवाद!! 🙏🙏

6 comments:

  1. कौन कथित शुद्ध भेष में छद्म स्वरूप धारण कर ले कह नहीं सकते ?क्योकि अकारण कोई एसा नहीं करता | थोड़े शब्दों में बहुत कुछ कहती रचना !शुभकामनाएं प्रिय प्रकाश |

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    1. ऐसी सराहना मुझे प्रोत्साहित करती है। सहृदय आभार एवं धन्यवाद।

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  2. पूजा तेरा,या तेरी ?????????????

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    1. मैंने सुधार कर दिया, रेणु दी। मैं आशा करता हूँ कि भविष्य में भी आपका ऐसा व्यवहार मेरे प्रति बना रहेगा। आभार।

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  3. स्व की भावनाओं का विश्लेषण करता
    मन कभी अशुद्ध नहीं हो सकता है।

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    Replies
    1. जी बिल्कुल सहमत हूँ, दीदी!

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