PC : @prakashsah |
किसी ने सोचा कि
मुझ जंगल को लूट लेने से
मैं खाली हो जाऊँगा।
हाँ, खाली हो जाऊँगा कई निराशाओं से।
शायद क़ाबिल नहीं रहा
उन्हें छाँव देने में।
शायद क़ाबिल नहीं रहा
उन्हें जीवन ऊर्जा देने में।
-प्रकाश साह
15062024
मेरी कुछ अन्य नयी रचनाएँ....
बहुत खूब।
ReplyDeleteजी धन्यवाद।
Deleteजंगल खाली करने वालों को शायद अंदाज़ा नहीं वो ख़ुद को ख़ाली कर रहे।
ReplyDeleteगहन वैचारिकी अभिव्यक्ति।
सस्नेह ।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १३ अगस्त २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
धन्यवाद एवं आभार।
Deleteबहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद
Deleteजी प्रिय प्रकाश! कभी कभी खाली होना नये रास्ते खोल देता है👌👌
ReplyDeleteसादर प्रणाम।
Deleteवाह! सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteसादर प्रणाम एवं धन्यवाद।
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